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रविवार, 3 नवंबर 2013

कुमार अंबुज की कहानी 'एक दिन मन्‍ना डे' (स्‍वर यूनुस ख़ान)

"
'कॉफी-हाउस' पर हम सबकी ओर से आपको दीपावली की शुभकामनाएं। हमारी यही कामना है कि दुनिया में साहित्‍य का, शब्‍दों का प्रकाश फैले। 'कॉफी-हाउस' का मक़सद ही ये है कि हम...कहानियों को सुनने की परंपरा को आगे बढ़ाएं। जीवन की इस आपाधापी में बहुधा नयी पीढ़ी तो 'हिंदी' पढ़ने और सुनने से दूर होती चली जा रही है। ऐसे में अगर कहानियों का 'ऑडियो' उपलब्‍ध हो तो मुमकिन है कि आज के नये इलेक्‍ट्रॉनिक माध्‍यमों के ज़रिये हम सब चलते-फिरते कहानियां सुन सकें।

पिछले दिनों जाने-माने पार्श्‍व-गायक मन्‍ना डे का निधन हो गया।


वे अपने पीछे छोड़ गये अपने संगीत की भव्‍य विरासत। और तभी कवि और मित्र कुमार अंबुज ने साझा की अपनी एक कहानी जो मोटे तौर पर मन्‍ना डे को केंद्र में रखकर लिखी गयी है। कहानी हमें कई मायनों में अद्भुत लगी है। इसलिए आज 'कॉफी-हाउस' पर इसे प्रस्‍तुत किया जा रहा है। हमारे समय के जाने-माने कलाकारों और उनके प्रति दीवानगी पर इक्‍का-दुक्‍का कहानियां ही लिखी गयी हैं। हमारे लिए ये बहुत ही दिलचस्‍प है कि एक कहानी में मन्‍ना दा आते हैं--और आता है एक रोचक पाठ।

कुमार अंबुज कवि-कथाकार हैं। हम उन्‍हें 'किवाड़' और 'क्रूरता' जैसे

संग्रहों के लिए जानते हैं। 'अनंतिम', 'अतिक्रमण' और 'अमीरी रेखा' उनके अन्‍य संग्रह हैं। उनकी कविताएं कविता-कोश पर यहां पढ़ी जा सकती हैं। और ये है उनके ब्‍लॉग का लिंक हाल ही में पूँजीवादी समाज में श्रमिक समस्‍याओं के संबंध में एक पुस्तिका
'मनुष्‍य का अवकाश' शीर्षक से आयी है। हां.. आपको बता दें कि इस कहानी को सुनने के लिए आपको अपने व्‍यस्‍त जीवन में से क़रीब चौदह मिनिट निकालने पड़ेंगे। कहानी को डाउनलोड करके साझा भी किया जा सकता है।

Story: Ek Din Manna Dey.
Writer: Kumar Ambuj
Voice: Yunus Khan
Duration: 14 45




एक और प्‍लेयर ताकि सनद रहे


ये रहीं डाउनलोड कडियां
डाउनलोड कड़ी एक 
डाउनलोड कड़ी दो



ये भी कह दें कि 'कॉफी-हाउस' की कहानियों को आप डाउनलोड करके अपने मित्रों-आत्‍मीयों के साथ बांट सकते हैं। साझा कर सकते हैं। कोई समस्‍या है तो ये ट्यूटोरियल पढ़ें

अब तक की कहानियों की सूची- 

महादेवी वर्मा की रचना--'गिल्‍लू'
भीष्‍म साहनी की कहानी--'चीफ़ की दावत'
मन्‍नू भंडारी की कहानी-'सयानी बुआ'
एंतोन चेखव की कहानी- 'एक छोटा-सा मज़ाक़'
सियाराम शरण गुप्‍त की कहानी-- 'काकी'
हरिशंकर परसाई की रचना--'चिरऊ महाराज'
सुधा अरोड़ा की कहानी--'एक औरत तीन बटा चार'
सत्‍यजीत रे की कहानी--'सहपाठी'
जयशंकर प्रसाद की कहानी--'ममता'
दो बाल कहानियां--बड़े भैया के स्‍वर में
उषा प्रियंवदा की कहानी वापसी
अमरकांत की कहानी 'दोपहर का भोजन'
ओ. हेनरी की कहानी 'आखिरी पत्‍ता'
लू शुन की कहानी आखिरी बातचीत'
प्रत्‍यक्षा की कहानी 'बलमवा तुम क्‍या जानो प्रीत'
अज्ञेय की कहानी 'गैंगरीन'
महादेवी वर्मा का संस्‍मरण 'सोना हिरणा'
ओमा शर्मा की कहानी ग्‍लोबलाइज़ेशन
ममता कालिया की कहानी 
लैला मजनूं
प्रेमचंद की कहानी 'बड़े भाई साहब'
सूरज प्रकाश की कहानी 'दो जीवन समांतर'

तो अब अगले रविवार मिलेंगे, किसी और रोचक कहानी के पाठ के साथ। आप डाउनलोड करके कहानियों को साझा कर रहे हैं ना। एक छोटा-सा काम और कीजिएगा। 'कॉफी-हाउस' के बारे में अपने साथियों को अवश्‍य बताईयेगा। 

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'कॉफी-हाउस' पर हम सबकी ओर से आपको दीपावली की शुभकामनाएं। हमारी यही कामना है कि दुनिया में साहित्‍य का, शब्‍दों का प्रकाश फैले। 'कॉफी-हाउस' का मक़सद ही ये है कि हम...कहानियों को सुनने की परंपरा को आगे बढ़ाएं। जीवन की इस आपाधापी में बहुधा नयी पीढ़ी तो 'हिंदी' पढ़ने और सुनने से दूर होती चली जा रही है। ऐसे में अगर कहानियों का 'ऑडियो' उपलब्‍ध हो तो मुमकिन है कि आज के नये इलेक्‍ट्रॉनिक माध्‍यमों के ज़रिये हम सब चलते-फिरते कहानियां सुन सकें।

पिछले दिनों जाने-माने पार्श्‍व-गायक मन्‍ना डे का निधन हो गया।


वे अपने पीछे छोड़ गये अपने संगीत की भव्‍य विरासत। और तभी कवि और मित्र कुमार अंबुज ने साझा की अपनी एक कहानी जो मोटे तौर पर मन्‍ना डे को केंद्र में रखकर लिखी गयी है। कहानी हमें कई मायनों में अद्भुत लगी है। इसलिए आज 'कॉफी-हाउस' पर इसे प्रस्‍तुत किया जा रहा है। हमारे समय के जाने-माने कलाकारों और उनके प्रति दीवानगी पर इक्‍का-दुक्‍का कहानियां ही लिखी गयी हैं। हमारे लिए ये बहुत ही दिलचस्‍प है कि एक कहानी में मन्‍ना दा आते हैं--और आता है एक रोचक पाठ।

कुमार अंबुज कवि-कथाकार हैं। हम उन्‍हें 'किवाड़' और 'क्रूरता' जैसे

संग्रहों के लिए जानते हैं। 'अनंतिम', 'अतिक्रमण' और 'अमीरी रेखा' उनके अन्‍य संग्रह हैं। उनकी कविताएं कविता-कोश पर यहां पढ़ी जा सकती हैं। और ये है उनके ब्‍लॉग का लिंक हाल ही में पूँजीवादी समाज में श्रमिक समस्‍याओं के संबंध में एक पुस्तिका
'मनुष्‍य का अवकाश' शीर्षक से आयी है। हां.. आपको बता दें कि इस कहानी को सुनने के लिए आपको अपने व्‍यस्‍त जीवन में से क़रीब चौदह मिनिट निकालने पड़ेंगे। कहानी को डाउनलोड करके साझा भी किया जा सकता है।

Story: Ek Din Manna Dey.
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अब तक की कहानियों की सूची- 

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लैला मजनूं
प्रेमचंद की कहानी 'बड़े भाई साहब'
सूरज प्रकाश की कहानी 'दो जीवन समांतर'

तो अब अगले रविवार मिलेंगे, किसी और रोचक कहानी के पाठ के साथ। आप डाउनलोड करके कहानियों को साझा कर रहे हैं ना। एक छोटा-सा काम और कीजिएगा। 'कॉफी-हाउस' के बारे में अपने साथियों को अवश्‍य बताईयेगा। 

11 टिप्पणियाँ:

  1. ये कहानी पढ़ रखी है। पढ़ी कहानी को आपकी आवाज में सुनना और अच्छा लगा। संवेदनशील कहानी का बेहतरीन पाठ।

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  2. वाह. बहुत कठि‍न है इस प्रकार के वि‍षय पर कहानी कहना. स्‍वर ने कहानी में चार चॉद लगा दि‍ए.

    जवाब देंहटाएं
  3. अम्बुज जी !
    उस शाम रवीन्द्र भवन में मुलाक़ात के समय पता नहीं था कि आप लेखक हैं और हम दोनों की मुलाक़ात पर भी इतना बढ़िया ,गजब का लिखेंगे ("ज़िप" सहित) और यूनुस जी उस से भी बढ़िया सुनाएंगे ।
    आज ही यह भी पता चला कि उस रात कमरे पर जाने के बाद आप पर भी क्या बीती ।
    वो "एक दिन" सचमुच आने पर मुझ पर क्या बीती,अब बताने की जरूरत नहीं और न उस पर किसी नयी कहानी की !
    - "वही"

    जवाब देंहटाएं
  4. इस कहानी को आपके स्‍वर में श्रोता की तरह सुनना बेहद दिलचस्‍प अनुभव रहा। इस तरह अपनी ही रचना से एक सर्जनात्‍मक दूरी और उत्‍सुकता बनती है। आपने कहानी के अंत में मन्‍ना के गाने के साउण्‍ड ट्रेक को पिरोकर एक सुंदर प्रयोग किया है। और आपकी आवाज की बहुआयामिता में, साहित्‍य के प्रति आपका अनुराग अलग से चमकता है। धन्‍यवाद और बधाई। आप अपने इस ब्‍लॉग में धीरे-धीरे अनेक महत्‍वपूर्ण कहानियों का एक अलबम बना रहे हैं। यह दृष्‍टव्‍य और रेखांकित करने योग्‍य है।

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  5. शुक्रिया कुमार अंबुज जी। आपकी राय हमारे लिए बहुत मायने रखती है।

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  6. अंबुज जी, युनुस जी आप दोनों बधाई के पात्र हैं
    एक मार्मिक कहानी लिखना और उसे जीवंत कर देना,
    ये आप दोनों से ही हो पाया
    इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद और बधाईया

    सच बात कहुँ यह ख्याल कभी हमारी भी आँखों को गीला कर गया था
    वही ख्याल आप दोनों से सुन कर मन फिर उस छड़ और उस घडी में चला गया
    और पुरे शरीर में एक झुरझुरी सी दौड़ गयी

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  7. इतने दिनों में इतनी कहानियों में इतने श्रोताओं की टिप्पणियाँ पढ़ीं; यहाँ तक कि वाचकों और ख़ुद लेखकों तक की भी; लेकिन किसी कहानी के ख़ुद किसी पात्र की टिप्पणी पहली बार पढ़ी ।

    इस चमत्कार को लेखक की लेखनी का असर समझें या वाचक की आवाज़ और एकदम नये प्रयोग का ?

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  8. आाशीष देवलिया5 नवंबर 2013 को 2:49 pm बजे

    वाह कहानी के अलावा वाचक की खनकती आवाज, जैसे सोने पर सुहागा

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  9. हम खुश हैं .... कि हमने मन्ना दे को साक्षात् सुना है.

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