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रविवार, 18 मई 2014

तरुण भटनागर की कहानी 'ढिबरियों की क़ब्रगाह' (आवाज़ यूनुस ख़ान)

"
'कॉफी-हाउस' में हम हर सप्‍ताह लेकर आते हैं एक कहानी का पाठ।
हमने कहानी का वाचन इसलिए शुरू किया है कि इस व्‍यस्‍त समय में घर-परिवार के लोगों के साथ सुनने का मौक़ा निकाला जा सके। या शहरों में रोज़मर्रा के ट्रैवल के बीच भी कहानी सुनी जा सके।

आपको बता दें कि इन कहानियों को डाउनलोड और शेयर किया जा सकता है।


आप अपने मोबाइल, टैबलेट, डेस्‍कटॉप, पेन-ड्राइव वग़ैरह पर कहानी को रख सकते हैं। व्‍हाट्स-एप पर शेयर कर सकते हैं। सोशल-नेटवर्किंग पर साझा कर सकते हैं। तमाम तरीक़े हैं इन कहानियों को दूर तक पहुंचाने के।

इस बार हम लेकर आए हैं तरूण भटनागर की कहानी 'ढिबरियों की क़ब्रगाह'। तरूण युवा कहानी का एक संजीदा चेहरा हैं। चूंकि तरूण का ताल्‍लुक़ पुराने मध्‍यप्रदेश और अब छत्‍तीसगढ़ के बस्‍तर इलाक़े से रहा है, इसलिए उनकी कहानियों में वहां के मन और जीवन के हैरत भरे दृश्‍य मिलते हैं। वे कविताएं भी लिखते हैं। उनकी पुस्‍तकें हैं 'गुलमेंहदी की झाडियां', 'लौटती नहीं जो हंसी' और 'भूगोल के दरवाज़े पर'।


Story: Dhibriyon Ki Qabragaah
Writer: Traun Bhatnagar
Voice: Yunus Khan
Duration: 15:19



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ये भी कह दें कि 'कॉफी-हाउस' की कहानियों को आप डाउनलोड करके अपने मित्रों-आत्‍मीयों के साथ बांट सकते हैं। साझा कर सकते हैं। कोई समस्‍या है तो ये ट्यूटोरियल पढ़ें

अब तक की कहानियों की सूची- 
महादेवी वर्मा की रचना--'गिल्‍लू'
भीष्‍म साहनी की कहानी--'चीफ़ की दावत'
मन्‍नू भंडारी की कहानी-'सयानी बुआ'
एंतोन चेखव की कहानी- 'एक छोटा-सा मज़ाक़'
सियाराम शरण गुप्‍त की कहानी-- 'काकी'
हरिशंकर परसाई की रचना--'चिरऊ महाराज'
सुधा अरोड़ा की कहानी--'एक औरत तीन बटा चार'
सत्‍यजीत रे की कहानी--'सहपाठी'
जयशंकर प्रसाद की कहानी--'ममता'
दो बाल कहानियां--बड़े भैया के स्‍वर में
उषा प्रियंवदा की कहानी वापसी
अमरकांत की कहानी 'दोपहर का भोजन'
ओ. हेनरी की कहानी 'आखिरी पत्‍ता'
लू शुन की कहानी आखिरी बातचीत'
प्रत्‍यक्षा की कहानी 'बलमवा तुम क्‍या जानो प्रीत'
अज्ञेय की कहानी 'गैंगरीन'
महादेवी वर्मा का संस्‍मरण 'सोना हिरणा'
ओमा शर्मा की कहानी ग्‍लोबलाइज़ेशन
ममता कालिया की कहानी 
लैला मजनूं
प्रेमचंद की कहानी 'बड़े भाई साहब'
सूरज प्रकाश की कहानी 'दो जीवन समांतर'
कुमार अंबुज की कहानी 'एक दिन मन्‍ना डे'
अमृता प्रीतम की कहानी- 'एक जीवी, एक रत्‍नी, एक सपना'
जादू की सुनाई पापा की कहानी 'बादल भाई'
उदय प्रकाश की कहानी-'नेलकटर'
सूर्यबाला की कहानी 'दादी और रिमोट'
एस. आर. हरनोट की कहानी 'मोबाइल'
स्‍वयं प्रकाश की कहानी 'नीलकांत का सफर'
जादू की कहानी 'बदमाश कौआ'
प्रेमचंद गांधी की कहानी--'31 दिसंबर की रात''
रवींद्र कालिया की कहानी- 'गोरैया'।
अरविंद की कहानी 'रेडियो'
लक्ष्‍मी शर्मा की कहानी 'बातें'
हरिशंकर परसाई का व्‍यंग्‍य 'ठिठुरता हुआ गणतंत्र'
चंदन पांडे की कहानी 'मोहर'
कैलाश वानखेड़े की कहानी 'सत्‍यापित'
विभा रानी की कहानी 'मोहन जोदाड़ो की नंगी मूरत'
अमरकांत की कहानी 'पलाश के फूल'
उपेंद्रनाथ अश्‍क की कहानी 'डाची'।
ज्ञानरंजन की कहानी 'अमरूद का पेड़'
कुर्रतुल-ऐन-हैदर की कहानी- 'फोटोग्राफर' 
शशिभूषण द्विवेदी की कहानी --'छुट्टी का दिन' 
मनीषा कुलश्रेष्‍ठ की कहानी 'मौसम के मकान सूने हैं'
प्रभात रंजन की कहानी -'पत्र लेखक, साहित्‍य और खिड़की'
गुलज़ार की कहानी 'तकसीम'
गैब्रिएल गार्सिया मार्केज़ की दो कहानियां 'गांव में कुछ बहुत बुरा होने वाला है' और 'ऐसे ही किसी दिन' 
गीताश्री की कहानी ''लबरी' 
हृदयेश की कहानी 'तोते' मधु अरोड़ा की कहानी 'मुक्ति'


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'कॉफी-हाउस' में हम हर सप्‍ताह लेकर आते हैं एक कहानी का पाठ।
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अज्ञेय की कहानी 'गैंगरीन'
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लैला मजनूं
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गुलज़ार की कहानी 'तकसीम'
गैब्रिएल गार्सिया मार्केज़ की दो कहानियां 'गांव में कुछ बहुत बुरा होने वाला है' और 'ऐसे ही किसी दिन' 
गीताश्री की कहानी ''लबरी' 
हृदयेश की कहानी 'तोते' मधु अरोड़ा की कहानी 'मुक्ति'


1 टिप्पणियाँ:

  1. Gyasu Shaikh said:

    तरुण भटनागर जी की कहानी 'ढिबरियों की क़ब्रगाह'
    सुनी, पसंद आई। कहानी है या जंगल को अंजुरी !
    कितना सहज जंगल परिवेश विश्लेषित है कहानी में।
    जंगल के, शहर के, गांव के, सात समुंदर पार के पाप
    अलग-अलग होते हैं। स्त्री-पुरुष के परस्पर को देखने
    के भाव की भी अपनी-अपनी स्थानीय व्याख्याएं होती
    है । मौलिक सा चिंतन… एक सहज नैसर्गिक सच्चाई
    स्त्री की अपनी मान्यताओं की… नदी का वर्णन भी
    कहानी में सहज गूंथा गया है । तरुण भटनागर जी की
    सुनी यह मेरी पहली कहानी है। इतना अच्छा लिखे
    वह जिसका पूर्वानुमान इस एक कहानी को सुनकर
    ही हो रहा है।

    ममता सिंह जी और युनुस खान जी दोनों की
    प्रस्तुति आत्मीयता लिए होती है। महत्तम न्याय कर
    पाते हैं वे कहानी के साथ और लेखक की उनकी अपनी
    मौलिक अभिव्यक्ति के साथ भी ।आवाज़ दोनों की ही
    स्वच्छ भाववाही कर्णप्रिय और अपनापन लिए है।
    रेडियो प्रस्तुति के आकाश के शुक्र तारक से लगे दोनों
    ही।

    युनुस जी आप इस कहानी 'ढिबरियों की क़ब्रगाह' में
    अपनी मौलिक रेडियो प्रस्तुति से छा गए हो…

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